सोचें फिर इस्तेमाल करें!!
आजकल विश्व के सभी देश ज्यादा से ज्यादा दूध उत्पादन करने वाले देश की श्रेणी में आना चाहते हैं। इसके लिए तरह-तरह के आधुनिक और अप्राकृतिक तरीकों से वो ज्यादा दूध देने वाली गायों को बनाने की होड़ लगी हुई है।
आज प्रकाशित नवभारत के समाचार के मुताबिक चीन के वैज्ञानिकों ने 100 टन दूध देने वाली सुपर गायें बनायी हैं।
परन्तु क्या इस तरह अप्राकृतिक रूप से बनाई हुई गायों का दूध सही मायने में अर्थव्यवस्था को लाभ पहुंचाने का काम करेगा? ऐसे प्रयोग करते समय वैज्ञानिक या देश की सरकार प्रत्यक्ष रूप से और तुरंत होने वाले फायदे को तो देखती है परन्तु अप्रत्यक्ष रूप में और लंबे समय में होने वाले भारी नुकसान को शायद नजरंदाज कर देते हैं।
आधुनिकता और अर्थव्यवस्था की होड़ में खान-पान के उत्पादों में जितने भी प्रयोग आज तक किये गये, सभी का दुष्परिणाम हमें आज देखने को मिल रहा है। चाहे वो कृषि के क्षेत्र में हो, दुग्ध उत्पादन के या प्रोसेस्ड फूड के क्षेत्र में, सभी के दुष्परिणाम हम सभी आज भुगत रहे हैं।
हम तत्काल मिलने वाले आर्थिक फायदों को तो देख लेते हैं परन्तु लंबे अंतराल में होने वाले स्वास्थ्य पर होने वाले गंभीर दुष्प्रभावों को नजरंदाज कर देते हैं। स्वास्थ्य पर होने वाले गंभीर दुष्प्रभावों का नुक़सान तत्काल मिलने वाले आर्थिक फायदों से कई गुना अधिक होता है।
वैज्ञानिकों और डाक्टर्स की रिपोर्ट के मुताबिक ज्यादा दूध देने वाली वाली गायों पर बीमारियों का खतरा ज्यादा रहता है, क्योंकि उनकी शारीरिक और मानसिक ताकत दूध उत्पादन में लग जाती है, जिससे वे कमजोर हो जाती हैं और प्राकृतिक दूध में पाते जाने वाले गुणों को खो देती हैं। ज्यादातर मामलों में देखा गया है अधिक दूध देने वाली गाय-भैंसों में तरह-तरह के रोग होने की संभावना अधिक होती है।
पहले ही आनुवंशिक बदलाव से जर्सी गायों के निर्माण से हम दुष्परिणाम भुगत रहे हैं और अब ज्यादा दुग्ध उत्पादन की होड़ ने इसे और खतरनाक रूप दे दिया है।
जर्सी गाय के दूध में पाया जाने ए-1 बीटा कैसिन किडनी और लीवर को कमजोर कर रहा है। जर्सी गाय भले ज्यादा दूध देती है, मगर इसमें पाया जाने वाला यह प्रोटीन लीवर व किडनी के साथ ही पैंक्रियाज, मस्तिष्क को धीरे-धीरे नुकसान पहुंचाता है। जिससे इन अंगों में सूजन की समस्या होने लगती है, जो कई अन्य किस्म की बीमारियों की वजह बनती है।
बीएचयू आयुर्वेद संकाय, काय चिकित्सा विभागाध्यक्ष प्रो. ओपी सिंह ने बताया है कि यूरोप की गायों में अनुवांशिक बदलाव के कारण ए-2 से ए-1 हुआ। ए-2 मिल्क के मुकाबले ए-1 आनुवांशिक तौर पर अलग है। इसमें एक अमीनो एसिड का अंतर है। यानी यूरोप, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड से आने वाली विदेशी गायों का दूध ए-1 होता है, जिसका गुणवत्ता से कोई लेना देना नहीं है। दरअसल, बीसीएम-7 एक छोटा-सा प्रोटीन होता है, जो ए-2 दूध देने वाली देसी गायों के यूरिन, ब्लड या आतों में नहीं मिलता, लेकिन ए-1 जर्सी गायों के दूध में पाया जाता है। इस कारण ए-1 दूध पचाने में दिक्कत होती है। ए-1 दूध से होने वाली समस्याएं : टाइप-1 डायबिटीज, दिल के रोग, बच्चों में सायकोमोटर का धीमा विकास,ऑटिज्म, सिजोफ्रिना, एलर्जी से बचाव न कर पाना। स्वर्ण व रजत भस्म अच्छे प्रतिरोधक : प्रो. ओपी सिंह बताते हैं कि रोग प्रतिरोधकता बढ़ाने के लिए आयुर्वेद में स्वर्ण व रजत भस्म के प्रयोग का उल्लेख मिलता है। देसी गाय के दूध में यह दोनों तत्व आयनिक फार्म में होते हैं। इस कारण इनका दूध हल्के पीले रंग का होता है। ए-1 व ए-2 दोनों ही दूध में लैक्टोज तो रहता है। ए-2 दूध के लैक्टोज को पचाया जा सकता है। इसमें प्रोलिन नामक अमीनो एसिड इसे और गुणकारी बनाता है।
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